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Lalitpur News: बीमार चल रहे ग्रामीण की मौत, परिजनों ने लगाए इलाज में लापरवाही के आरोप

Ailing villager dies, family alleges medical negligence

प्रयागराज में यूरेनियम युक्त पानी पी रहे लोग:डॉ. अजय सोनकर के शोध में खुलासा, रिपोर्ट सरकार को भेजी

प्रयागराज में रहने वाले लोग यूरेनियम युक्त पानी पी रहे रहे है। इसका खुलासा नैनी के रहने वाले एक साइंटिस्ट ने अपने रिसर्च में किया है। इसके बारे में जानने के लिए भास्कर टीम ने साइंटिस्ट पद्मश्री डॉक्टर अजय कुमार से मुलाकात की और इस बारे में पूरी जानकारी ली। घरों में आने वाले और वेस्ट पानी पर रिसर्च किया हैं। जांच क़ी रिपोर्ट में पता लगा कि जो पानी हम बोरिंग से ले रहें हैं उसमे यूरिनियम क़ी मात्रा काफी अधिक हैं। अगर हम RO से फिलटर कर रहें हैं तो RO के वेस्ट पानी मे यूरिनियम क़ी मात्रा और भी ज़्यादा बढ़ जाती है। जो नाले नालियो के ज़रिये मिट्टी में पहुंचकर कर खेतों में फल और सब्जियों क़ो प्रभावित कर रही हैं। यह हर व्यक्ति के लिए एक स्लो प्वाइजन हैं। उन्होंने इस जांच ये सारी रिपोर्ट सरकार क़ो भेज दी हैं। प्रयागराज के समुद्री जीव वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ अजय कुमार सोनकर नें पानी में यूरिनियम क़ी जांच के लिए सबसे पहले दिल्ली के पानी पर शोध किया। दिल्ली के नज़फ गढ़, रोहिणी और द्वारिका में उन्होंने अपनी टीम के साथ अलग अलग घरों में आने वाले पानी का सैम्पल लेकर उसकी जांच क़ी। जांच में एक लीटर पानी में काफी ज़्यादा यूरिनियम मिला। जबकि एक लीटर मे 30, माइक्रोग्राम यूरिनियम मिलना नॉर्मल हैं। शोध मे पानी में यूरिनियम क़ी मात्रा इतनी अधिक पाई गई। उन्होंने घरों से आने वाले पानी और वेस्ट पानी का सैम्पल लेकर जांच क़ी। जिसमें यूरिनियम क़ी मात्रा कम हैं, जबकि जो पानी वेस्ट निकल कर नालियो में बह रहा उसमें यूरिनियम क़ी मात्रा बहुत अधिक हैं। गंगा और यमुना के पानी नहीं मिला यूरेनियमडॉ अजय सोनकर नें बताया क़ी पानी मे यूरिनियम आने का मुख्य सोर्स खनन हैं। ज़मीन के अंदर हर लोहा, कास्टरन, सोना और यूरिनियम जैसी चीजें और खनन होने से ये ऊपर आकर फ़ैलते हैं। खनन से ज़मीन के नीचे भी फ़ैल रहें हैं। जिससे वो पानी मे भी घुल जाते हैं। यूरिनियम युक्त पानी बोरिंग के ज़रिये लोगो के घरों में पहुंच रहा हैं। किस तरह की हो सकती है बीमारियांयह कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, बाइकार्बोनेट और ट्रेस एलिमेंट्स जैसे ज़रूरी मिनरल्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को भी हटा देता है, जिससे पानी बायोलॉजिकली कमज़ोर हो जाता है। पानी पोषण रहित हो जाता है, उन प्राकृतिक मिनरल्स से रहित हो जाता है जो दिल के कार्यरत, मांसपेशियों को सक्रिय, नर्व सिग्नलिंग, हाइड्रेशन बैलेंस और हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं। इस तरह, भले ही RO हमें दूषित पदार्थों से बचाता है, लेकिन यह हमें उन पोषक तत्वों से वंचित कर देता है जिन पर हमारी फिजियोलॉजी निर्भर करती है। भू जल को भी बढ़ रहा खतरारिवर्स ऑस्मोसिस (RO) के कारण बढ़ रही है भूजल मे यूरेनियम की सघनता - वैज्ञानिक अजय कुमार सोनकरदिल्ली व बिहार के तमाम जिलों भूजल में बढ़ी हुई यूरेनियम की मात्रा पाई गई है, इसको लेकर जनचिंता तेज हुई है। पद्मश्री से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ अजय ने बताया कि एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य अब भी व्यापक रूप से अनदेखा है, रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) सिस्टम जो घर घर में पानी को साफ करने के लिए इस्तेमाल होता है इसके द्वारा लगातार छोड़ा जा रहा रिजेक्ट पानी, जिसमें यूरेनियम की सांद्रता कई गुना बढ़ जाती है। और यह समस्या केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है प्रयागराज सहित देश के सभी शहरी क्षेत्रों में, जहां RO का अत्यधिक उपयोग होता है, भूजल में यूरेनियम का यही खतरनाक संचयन तेजी से देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि RO सिस्टम यूरेनियम को हटाते नहीं, बल्कि उन्हें छान के अलग करके रिजेक्ट पानी को और भी सान्द्र करके वापस जमीन में भेज देते हैं, भूजल में क्षेत्र की भौगोलिक संरचना के कारण पहले से ही अल्प मात्रा में यूरेनियम मौजूद रहता है। लेकिन घरों, दफ्तरों, रेस्तराँ और वाणिज्यिक भवनों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले RO सिस्टम यूरेनियम को खत्म नहीं करते।इसके विपरीत, वे फ़िल्ट्रेशन प्रक्रिया के दौरान यूरेनियम को रिजेक्ट पानी में अत्यधिक सांद्र कर देते हैं। उदाहरण के लिए:यदि भूजल में यूरेनियम की मात्रा 30 μg/L है,तो RO रिजेक्ट पानी में यह 100–300 μg/L या उससे भी अधिक हो सकती है। जिसके सुरक्षित निस्तारण के लिए भारत में कोई दिशा निर्देश नहीं है। यह अत्यधिक-सांद्रित रिजेक्ट पानी अक्सर नालियों में, खुली मिट्टी पर, सोख्तों (soak pits) में छोड़ दिया जाता है। वहां से यह धीरे-धीरे पुनः मिट्टी में रिसकर भूजल में मिल जाता है, जिससे नीचे के एक्विफ़र में यूरेनियम की मात्रा बढ़ती जाती है। यह प्रक्रिया एक वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त लेकिन आमतौर पर अनदेखा किया गया चक्र बनाती है।इस प्रकार हर चक्र भूजल में यूरेनियम की सांद्रता को और बढ़ाता जाता है।शहरों में, जहाँ RO का अत्यधिक उपयोग होता है, भूजल स्तर तेजी से घट रहा है, और रिचार्ज सीमित है, यह समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। 1. यूरेनियम युक्त भूजल निकाला जाता है।2. RO सिस्टम इसे रिजेक्ट पानी में पांच से दस गुना गाढ़ा कर देते हैं।3. यह रिजेक्ट पानी मिट्टी में वापस चला जाता है।4. उथले एक्विफ़र्स में यूरेनियम और बढ़ जाता है।5. फिर वही अधिक-यूरेनियमयुक्त पानी दोबारा निकाला जाता है और यह चक्र चलता रहता है। फल और सब्जियां भी हो रही प्रभावितविख्यात वैज्ञानिक डॉ अजय ने बताया कि यूरेनियम-समृद्ध रिजेक्ट पानी मिट्टी में मिलता है, तो वह केवल भूजल ही नहीं, मिट्टी स्वयं भी प्रदूषित हो जाती है। यदि ऐसी मिट्टी में सब्जियां पौधे या फसलें उगाई जाती हैं, तो वे अपनी जड़ों के माध्यम से यूरेनियम को अवशोषित करती हैं। इसका अर्थ है कि पत्तेदार सब्जियां, कंद वाली फसलें, अनाज और फल सभी में यूरेनियम जमा हो सकता है। यदि वे ऐसी मिट्टी में उगाई जाएं जहां लगातार RO रिजेक्ट पानी पहुँच रहा हो। यह समस्या पानी से आगे बढ़कर भोजन तक पहुँच रहा है, जिससे व्यापक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो रही है। संभावित स्वास्थ्य प्रभाव पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यूरेनियम दो प्रकार की विषाक्तता प्रस्तुत करता है। अब जानिए शरीर में किसे होता है प्रवेशरेडियोलॉजिकल टॉक्सिसिटीयूरेनियम एक प्राकृतिक रेडियोधर्मी तत्व है। यद्यपि इसकी रेडियोएक्टिविटी अपेक्षाकृत कम है, परंतु लंबे समय तक इसके सेवन या संपर्क से जोखिम बढ़ता है। अंदर पहुंचने पर यह अल्फ़ा कणों का उत्सर्जन करता है, जो DNA को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, दीर्घकाल में कैंसर की संभावना बढ़ सकती है।रासायनिक (हेवी मेटल) टॉक्सिसिटीयह अधिक त्वरित और चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण जोखिम है।एक भारी धातु के रूप में यूरेनियम शरीर में सीसा और कैडमियम की तरह व्यवहार करता है। यह मुख्य रूप से किडनी को प्रभावित करता है, जिसके कारण नेफ्रोटॉक्सिसिटी, ट्यूब्युलर क्षति, फ़िल्ट्रेशन में कमी और क्रॉनिक किडनी डिस्फ़ंक्शन के गंभीर खतरे हैं।नियमित रूप से कम मात्रा में भी सेवन करने से शरीर में इसका संचयन हो सकता है और दीर्घकालिक हानि हो सकती है। इसप्रकार के RO उपयोग में नहीं लाए जाते? तो उन्होंने बताया कि अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, यूएई आदि देशों में ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ZLD) सिस्टम कम्युनिटी-स्केल RO के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें RO रिजेक्ट इवैपोरेशन टैंक या इवैपोरेटर या ठोस बचा हुआ हिस्सा खतरनाक-कचरे वाली जगह पर भेजा जाता है। कोई भी लिक्विड मिट्टी या ग्राउंडवाटर में वापस नहीं जाता है।

मिटेंगीं दूरिया, दूर होंगे शिकवे, मिलेंगे हाथ... महाराष्ट्र में ‘चाचा-भतीजा’ होंगे फिर साथ-साथ?

महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर पवार परिवार के एक होने की चर्चा है. अजित पवार के शरद पवार के जन्मदिन समारोह में शामिल होने के बाद से एनसीपी के दोनों गुटों के एकजुट होने की अटकलें तेज हो गई हैं. पुणे में लगे पोस्टरों ने इस मांग को और हवा दी है, जिसमें परिवार के साथ आने को महाराष्ट्र के हित में बताया गया है.

John Doe

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