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तमिलनाडु के चेन्नई और तीन अन्य जिलों में भारी से बहुत भारी बारिश होने का अनुमान

( तस्वीर सहित ) चेन्नई, 27 अक्टूबर (भाषा) चक्रवाती तूफान मोंथा के सोमवार दोपहर 2:30 बजे चेन्नई से लगभग 600 किलोमीटर पूर्व-दक्षिणपूर्व में केंद्रित होने की उम्मीद है, जिसके बाद चेन्नई और तीन अन्य जिलों में भारी से बहुत भारी वर्षा होने और तेज हवाएं चलने का पूर्वानुमान है। मौसम अधिकारियों ने यह जानकारी दी। [...]

AIIMS Delhi Vacancy 2025: दिल्ली एम्स में 12वीं पास को मिलेगी नौकरी, वो भी बिना परीक्षा, यहां भेज दें CV

AIIMS Vacancy 2025: दिल्ली एम्स में फील्ड वर्कर की वैकेंसी निकली है। 12वीं पास के लिए जॉब लेने का यह बढ़िया मौका है।

Chhath Puja 2025: एक पर्व नहीं है महापर्व है छठ पूजा

दिवाली के बाद छठ पूजा का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान घर से लेकर घाटों तक बेहद खास रौनक देखने को मिलती है। छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है और समापन सप्तमी तिथि पर होता है। इस दौरान छठी मैया की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है। इस व्रत को निर्जला किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसर छठी मैया की उपासना और व्रत करने से संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। छठ पूजा भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है। भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाने वाला यह बेहद अहम पर्व है जो पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्ध्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। हमारे देश में सूर्य उपासना के कई प्रसिद्ध लोकपर्व हैं जो अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाए जाते हैं। सूर्य षष्ठी के महत्व को देखते हुए इस पर्व को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस पर्व को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल की तराई समेत देश के उन तमाम महानगरों में मनाया जाता है। जहां-जहां इन प्रांतों के लोग निवास करते हैं। यही नहीं, मॉरिशस, त्रिनिडाड, सुमात्रा, जावा समेत विदेशों में भी भारतीय मूल के प्रवासी छठ पर्व को बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाते हैं। डूबते सूर्य की विशेष पूजा ही छठ का पर्व है। चढ़ते सूरज को सभी प्रणाम करते हैं।इसे भी पढ़ें: Chhath Puja 2025: लोक आस्था का महापर्व छठ, संध्या अर्घ्य का विशेष मुहूर्त, सूर्यदेव होंगे प्रसन्नछठ पर्व की सांस्कृतिक परम्परा में चार दिन का व्रत रखा जाता है। यह व्रत भैया दूज के तीसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ हो जाते है। व्रत के पहले दिन को नहा-खा कहते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ है स्नान के बाद खाना। इस दिन पवित्र नदी में श्रद्धालु स्नान करते हैं। वैसे तो यह पर्व मूल रूप से गृहिणियों द्वारा मनाया जाता है। लेकिन आजकल पुरुष भी इसमें समान रूप से सहयोग देते हैं। ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। इस कारण शास्त्रों में सूर्य को भगवान मानते हैं। सूर्य के बिना कुछ दिन रहने की जरा कल्पना कीजिए। इनका जीवन के लिए इनका रोज उदित होना जरूरी है। कुछ इसी तरह की परिकल्पना के साथ पूर्वोत्तर भारत के लोग छठ महोत्सव के रूप में इनकी आराधना करते हैं। सामान्यता यह त्योहार बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में छठ पूजा को महापर्व घोषित कर सरकारी छुट्टी भी लागू कर दी गई है। छठ पूजा का व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है। इस व्रत को करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है।छठ पर्व को किसने शुरू किया इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त किया था। इसी के उपलक्ष्य में छठ पूजा की जाती है। छठ का पौराणिक महत्व अनादिकाल से बना हुआ है। रामायण काल में सीता ने गंगा तट पर छठ पूजा की थी। महाभारत काल में कुंती ने भी सरस्वती नदी के तट पर सूर्य पूजा की थी। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें पांडवों जैसे पुत्रों का सुख मिला था। द्रौपदी ने भी हस्तिनापुर से निकलकर गढ़ गंगा में छठ पूजा की थी। छठ पूजा का सम्बंध हठयोग से भी है। जिसमें बिना भोजन ग्रहण किए हुए लगातार पानी में खड़ा रहना पड़ता है। जिससे शरीर के अशुद्ध जीवाणु परास्त हो जाते हैं।छठ पर्व की परम्परा में वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है। जिस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य रहता है और दक्षिणायन के सूर्य की अल्ट्रावॉइलट किरणें धरती पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इन दूषित किरणों का सीधा प्रभाव जनसाधारण की आंखों, पेट, त्वचा आदि पर पड़ता है। इस पर्व के पालन से सूर्य प्रकाश की इन पराबैंगनी किरणों से जनसाधारण को हानि न पहुंचे। इस अभिप्राय से सूर्य पूजा का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। इसके साथ ही घर-परिवार की सुख- समृद्धि और आरोग्यता से भी छठ पूजा का व्रत जुड़ा हुआ है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति, पत्नी, पुत्र, पौत्र सहित सभी परिजनों के लिए मंगल कामना से भी जुड़ा हुआ है। लोक परम्परा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई। छठ पूजा अथवा छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं और लोक गाथाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी राजाओं का यह मुख्य पर्व था। छठ के साथ स्कंद पूजा की भी परम्परा जुड़ी है। भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कंद की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी। इसी कारण स्कंद के छह मुख हैं और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा। कार्तिक से संबंध होने के कारण षष्ठी देवी को स्कंद की पत्नी देवसेना नाम से भी पूजा जाने लगा। एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे मे एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। महापर्व छठ हिंदू धर्म में एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। पर्व का प्रारंभ नहाय-खाय से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करते हैं। नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस पूजा को खरना कहा जाता है। इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके व्रत तोड़ा जाता है।छठ पूजा के व्रत को जो भी रखता है। वह इन दिनों में जल भी नही ग्रहण करता है। इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस पूजा वैसे तो मुख्य रुप से सू्र्य देवता की पूजा की जाती है। लेकिन साथ ही सूर्य देव की बहन छठ देवी की भी पूजा की जाती है। जिसके कारण इस पूजा का नाम छठ पूजा पड़ा। इस दिन नदी के तट में पहुंचकर पुरुष और महिलाएं पूजा-पाठ करते है। साथ ही छठ माता की पूजा को आपके संतान के लिए भी कल्याणकारी होती है। - रमेश सर्राफ धमोरा(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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