कथावाचन हुनर नहीं, जिम्मेदारी है। आज कथावाचकों की स्टार-वैल्यू लोगों की आंखों में चुभ रही है। सांसारिक व्यक्ति को निंदा में ही रस आता है। बड़े-बड़े संत इस निंदा-शस्त्र से आहत होते रहे हैं। लेकिन समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिन्हें कथा-सत्संगों से मार्गदर्शन मिल रहा है। अब सावधानी कथावाचकों को भी रखनी पड़ेगी। इनका आचरण लगातार निरीक्षण और परीक्षण से गुजर रहा है। लोग टिप्पणी करते हैं कि कथाओं में किस्से-कहानी, नाच-गाना, इसके अलावा क्या होता है। ये कथावाचक के विवेक पर निर्भर करता है कि इनका कितना उपयोग करे और क्यों करे। अगर कथावाचक अपना महत्व, ज्ञान स्थापित कर रहा है और श्रोता को उसकी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा, तो यह भी तमाशे की श्रेणी में होगा। इस दौर में श्रवण-रस का मतलब है समाधान का मार्ग। कथा कोई भी हो, उसकी भाषा ‘प्रॉब्लम-शूटर’ होनी चाहिए। अशांत, बेचैन, परेशान लोग कथाओं से समाधान चाहते हैं। अब समाधानकारी सत्संग ही स्वीकार होगा।
World Mental Health Day 2025: लोग सोचते हैं कि जब हालात ठीक हो जाएंगे, तो मन भी अपने आप ठीक हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं होता. जब मन टूटता है, तो उसका इलाज भी उतना ही जरूरी है जितना किसी शारीरिक बीमारी का.
केंद्र सरकार इमिग्रेशन एक्ट 1983 की जगह ओवरसीज मोबिलिटी (सुविधा और कल्याण) बिल, 2025 लाने की तैयारी में है। कहा जा रहा है कि इससे विदेश में नौकरी लगवाने के नाम पर होने वाले फर्जीवाड़ा या गलत तरीके से किसी देश में एंट्री कराने के मामले से निपटा जा सकेगा।
Indian News 20 द्वारा इस दिन पोस्ट की गई रविवार, 13 दिसंबर 2020
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