अजय कुमार, लखनऊप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्हें उनके शुभचिंतक अक्सर भारत के पुनर्जनन के अडिग रचनाकार के रूप में चित्रित करते हैं, उन्होंने जब से सत्ता संभाली है, वह विपक्ष की तमाम साजिशों के ‘तूफान’ के केंद्र में खड़े हैं. उनके आलोचक, मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके सहयोगी, ने उनकी छवि को धूमिल करने के लिए आरोपों का एक जाल बुना है, जो उन्हें भ्रष्टाचार-मुक्त और राष्ट्र के प्रति समर्पित नेता के रूप में कमजोर करने की कोशिश करता है. यह केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है; कुछ इसे एक सुनियोजित साजिश के रूप में देखते हैं, जिसका उद्देश्य संवैधानिक संस्थाओं को कीचड़ में घसीटकर और उन्हें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कठपुतली बताकर मोदी में जनता का विश्वास तोड़ना है. विपक्ष की रणनीति, जो चुनावी असफलताओं के बाद हताशा से भरी है, में लगातार आरोप लगाना शामिल है, जो मोदी को लोकतंत्र के स्तंभों, जैसे चुनाव आयोग (ईसी) से लेकर सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों तक, का हेरफेर करने वाला बताते हैं.इस कथित साजिश की जड़ें 2014, 2019 और 2024 में मोदी की भारी जीत तक जाती हैं, जिन्होंने विपक्ष को हक्का-बक्का कर दिया. विकास और राष्ट्रवाद पर उनकी अपील का मुकाबला करने में असमर्थ, विपक्ष ने मोदी के चरित्र हनन की रणनीति अपनाई. राफेल सौदे का विवाद इसका उदाहरण है. राहुल गांधी सहित विपक्षी नेताओं ने मोदी पर पक्षपात का आरोप लगाया, दावा किया कि विमान खरीद में उनके उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचाया गया. अदालतों ने इन दावों को खारिज कर दिया, लेकिन यह साजिश महीनों तक सोशल मीडिया और विदेशी रिपोर्टों के जरिए गूंजती रही. राहुल गांधी इस साजिश के अगुआ थे. इसके बाद विपक्ष, खासकर राहुल गांधी ने 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की अदानी समूह पर रिपोर्ट का सहारा लिया, जिसमें स्टॉक हेरफेर का आरोप लगाया गया और मोदी सरकार को जोड़ा गया, जिससे संसद में हंगामा हुआ. विपक्षी नेताओं ने जांच की मांग की, यह संकेत देते हुए कि मोदी अपने मित्रों को बचा रहे हैं, जबकि प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एजेंसियों को हथियार बनाया जा रहा है. भाजपा प्रवक्ताओं ने इसका जवाब दिया कि यह एक विदेशी-प्रायोजित स्मीयर कैंपेन है, जिसमें सेबी की अध्यक्ष मधबी पुरी बुच ने आरोपों को निराधार और चरित्र हनन का प्रयास बताया. फिर भी, विपक्ष ने इसे व्यापक साजिश के साथ जोड़कर मोदी की स्वच्छ छवि पर हमला जारी रखा.इस रणनीति का केंद्र संवैधानिक संस्थाओं पर हमला है. विपक्ष ने बार-बार ईडी और सीबीआई को पिंजरे का तोता करार दिया, यह आरोप लगाते हुए कि वे मोदी के नियंत्रण में हैं. 2023 में, 14 विपक्षी दलों ने इन एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें मनीष सिसोदिया और हेमंत सोरेन जैसे नेताओं की गिरफ्तारी को बदले की राजनीति बताया. उन्होंने दावा किया कि 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं पर हैं, जो संघवाद को कमजोर करते हैं. मोदी ने इसे भ्रष्टों का एकजुट होना कहकर खारिज किया, लेकिन कांग्रेस जैसे आलोचकों ने इसे लोकतंत्र का व्यवस्थित क्षरण बताया. न्यायपालिका भी अछूती नहीं रही; विपक्षी आवाजों ने सरकार के पक्ष में फैसलों पर सवाल उठाए, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) को बरकरार रखने से लेकर एजेंसी दुरुपयोग की याचिकाओं पर सुनवाई में देरी तक. सुप्रीम कोर्ट को भी घसीटा गया, यह आरोप लगाकर कि यह कार्यपालिका से प्रभावित है, हालांकि कोर्ट ने ऐसे दावों को राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज किया.2014 में मोदी को मिली शानदार जीत के बाद चुनाव आयोग को विपक्ष के सबसे तीखे हमले झेलने पड़े हैं. 2019 के चुनावों के बाद, विपक्षी दलों ने ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाया, कागजी मतपत्रों की वापसी की मांग की. राहुल गांधी और सहयोगियों ने 2024 के चुनावों में इसे और बढ़ाया, यह संकेत देते हुए कि मोदी की जीत में हेराफेरी हुई. अब बिहार चुनाव से पूर्व जब चुनाव आयोग एसआईआर करा रहा है तो उस पर वोटों की चोरी करने का आरोप लगाया जा रहा है, जिसको लेकर राहुल गांधी की टीम सारी हदें पार करती जा रही है. मोदी विरोधी राजनीति के चलते ही विपक्ष ने 2023 में नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार किया, इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो एक आदिवासी महिला हैं, का अपमान बताया, जबकि इससे पहले वे उनकी नियुक्ति का अपमान कर चुके थे. अमित शाह जैसे भाजपा नेताओं ने इसे पाखंड बताया, जो संस्थानों को बदनाम करने और मोदी की वैश्विक छवि को धूमिल करने की व्यापक साजिश का हिस्सा है. विदेशी तत्व आग में घी डालते हैं. 2023 में बीबीसी की 2002 के गुजरात दंगों पर डॉक्यूमेंट्री ने पुराने जख्मों को कुरेदा, जिसके खिलाफ भाजपा शासित राज्यों ने इसे अंतरराष्ट्रीय साजिश बताकर प्रस्ताव पारित किए. ऐसी रिपोर्टों पर विपक्ष की खुशी ने केवल जॉर्ज सोरोस जैसे समूहों के साथ मिलीभगत की धारणा को मजबूत किया, जो भारत को कमजोर करने की कोशिश में हैं.यह साजिश, जैसा कि भाजपा इसे देखती है, सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक फैली है. राहुल गांधी के 2023-24 में अमेरिका में दिए भाषणों ने मोदी को लोकतंत्र के लिए खतरा बताकर वैश्विक तानाशाहों से तुलना की. घरेलू स्तर पर, विपक्ष का ‘अघोषित आपातकाल’ का तंज मोदी के 11 साल के शासन पर गिरफ्तारियों और मीडिया पर अंकुश को उजागर करता है, लेकिन भाजपा आंकड़ों के साथ जवाब देती है. एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम करती हैं, और सजा अदालतों में बरकरार रहती है. विडंबना यह है कि जहां मोदी आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दे रहे हैं, वहीं विपक्ष विदेशों में, जैसे विदेशी राजदूतों से मिलकर मोदी-विरोधी साजिश को अंजाम देने में लगे हैं, जिसे राष्ट्रीय हितों के साथ विपक्ष का विश्वासघात माना जाता है. इसका परिणाम गहरा है. मोदी की स्वीकृति रेटिंग 2030 तक आर्थिक विकास के अनुमानों के साथ ऊंची बनी हुई है, लेकिन निरंतर शोर संस्थागत विश्वास को कमजोर करता है. आलोचकों का तर्क है कि यह विपक्षी रणनीति उलटी पड़ रही है, जो मतदाताओं को इससे दूर कर रही है, जो इसे हताशा का परिणाम मानते हैं. फिर भी, ध्रुवीकृत भारत में, यह विभाजन को बनाए रखता है. जैसा कि मोदी ने अपने 2025 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में संकेत दिया, जीएसटी में कमी और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हुए, विपक्ष का व्यक्तिगत हमलों पर ध्यान उन्हें और अलग-थलग कर सकता है. क्या यह साजिश इस दिग्गज को गिरा देगी, या विपक्ष की हताशा को उजागर करेगी? दिल्ली के सत्ता के खेल में, सत्य अक्सर बयानबाजी की परतों के नीचे दब जाता है, लेकिन एक बात स्पष्ट है मोदी की छवि के लिए यह लड़ाई भारत की आत्मा के लिए एक छद्म युद्ध है, जिसमें संवैधानिक संरक्षक क्रॉसफायर में फंस गए हैं.
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